छठ पूजा | Chhath Puja

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छठ पूजा | Chhath Puja एक प्राचीन हिंदू त्योहार है जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है, विशेष रूप से, भारतीय राज्य बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और मधेश और लुंबिनी के नेपाली प्रांत।

अनुष्ठान: पूजा और प्रसाद सहित प्रार्थना और धार्मिक अनुष्ठान, गंगा में स्नान और उपवास।

दिनांक: रविवार, 30 अक्टूबर, 2022

छठ पूजा की लंबाई: 1 दिन

महत्व: सूर्य, सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया की वंदना करने के लिए

धर्मों में विशेष रुप से प्रदर्शित: हिंदू धर्म, जैन धर्म यह भी कहा जाता है: छठ, छठ पर्व, छठ पूजा, डाला छठ, डाला पूजा, सूर्य षष्ठी




भगवान सूर्य आएं आपके द्वार, किरणों से भरे आपका घर संसार, छठ आपके लिए बन जाए समृद्धि का त्योहार, छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं।



Chhath Puja





छठ पूजा का महत्व




वर्ष में दो बार मनाये जाने वाले इस पर्व को पूर्ण आस्था और श्रद्धा से मनाया जाता है| पहला छठ पर्व चैत्र माह में मनाया जाता है और दूसरा कार्तिक माह में| यह पर्व मूलतः सूर्यदेव की पूजा के लिए प्रसिद्ध है| रामायण और महाभारत जैसी पौराणिक शास्त्रों में भी इस पावन पर्व का उल्लेख है| हिन्दू धर्म में इस पर्व का एक अलग ही महत्व है, जिसे पुरुष और स्त्री बहुत ही सहजता से पूरा करते है|

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाये जाने वाले इस पावन पर्व को ‘छठ’ के नाम जाना जाता है| इस पूजा का आयोजन पुरे भारत वर्ष में बहुत ही बड़े पैमाने पर किया जाता है| ज्यादातर उत्तर भारत के लोग इस पर्व को मनाते है| भगवान सूर्य को समर्पित इस पूजा में सूर्य को अर्ग दिया जाता है| कई लोग इस पर्व को हठयोग भी कहते है| इस वर्ष इस महापर्व का आरम्भ २४ अक्टूबर यानि मंगलवार से हो रहा है| ऐसा माना जाता है कि भगवान सूर्य की पूजा विभिन्न प्रकार की बिमारियों को दूर करने की क्षमता रखता है और परिवार के सदस्यों को लम्बी आयु प्रदान करती है| चार दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व के दौरान शरीर और मन को पूरी तरह से साधना पड़ता है| 

आइये जानते है इस पर्व के हर दिन के महत्व के बारे में:


पहला दिन: 
‘नहाय खाय’ के नाम से प्रशिद्ध इस दिन को छठ पूजा का पहला दिन माना जाता है| इस दिन नहाने और खाने की विधि की जाती है और आसपास के माहौल को साफ सुथरा किया जाता है| इस दिन लोग अपने घरों और बर्तनों को साफ़ करते है और शुद्ध-शाकाहारी भोजन कर इस पर्व का आरम्भ करते है|

दूसरा दिन: 
छठ पूजा के दुसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है| इस दिन खरना की विधि की जाती है| ‘खरना’ का असली मतलब पुरे दिन का उपवास होता है| इस दिन व्रती व्यक्ति निराजल उपवास रखते है| शाम होने पर साफ सुथरे बर्तनों और मिट्टी के चुल्हे पर गुड़ के चावल, गुड़ की खीर और पुड़ीयाँ बनायी जाती है और इन्हें प्रसाद स्वरुप बांटा जाता है|

तीसरा दिन: 
इस दिन शाम को भगवान सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है| सूर्य षष्ठी के नाम से प्रशिद्ध इस दिन को छठ पूजा के तीसरे दिन के रूप में मनाया जाता है| इस पावन दिन को पुरे दिन निराजल उपवास रखा जाता है और शाम में डूबते सूर्य को अर्ग दिया जाता है| पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शाम के अर्ग के बाद छठी माता के गीत गाये जाते है और व्रत कथाये सुनी जाती है|

चौथा दिन: 
छठ पूजा के चौथे दिन सुबह सूर्योदय के वक़्त भगवान सूर्य को अर्ग दिया जाता है| आज के दिन सूर्य निकलने से पहले ही व्रती व्यक्ति को घाट पर पहुचना होता है और उगते हुए सूर्य को अर्ग देना होता है| अर्ग देने के तुरंत बाद छठी माता से घर-परिवार की सुख-शांति और संतान की रक्षा का वरदान माँगा जाता है| इस पावन पूजन के बाद सभी में प्रसाद बांट कर व्रती खुद भी प्रसाद खाकर व्रत खोलते है|

छठ पूजा क्यों की जाती है? 

इस सवाल पर अनेकों ऋषियों एवं विद्यावानों के अलग-अलग राय है| इसी वजह से इस पवित्र पर्व को लेकर कई कथाएँ सामने आती है| इनमें से प्रमुख कहानियां कुछ इस प्रकार है:

आचार्य विपिन शास्त्री का कहना है कि जब भगवान श्री राम ने रावन को मार कर लंका पर विजय हासिल की थी, तब अयोध्या वापस आ कर उन्होंने सूर्यवंशी होने के अपने कर्तव्य को पूरा करने हेतु अपने कुल देवता भगवान सूर्य की आराधना की थी| उन्होंने देवी सीता के साथ इस पावन व्रत को रखा था| सरयू नदी में शाम और सुबह सूर्य को अर्ग दे कर उन्होंने अपने व्रत को पूर्ण किया| उन्हें देख कर आम व्यक्ति भी इसी भाति छठ व्रत को रखने लगे|
पौराणिक ऋषि का कहना है कि लिखित महाभारत कथाओं के अनुसार जब कर्ण को अंग देश का राजा बनाया गया तब वो नित-दिन सुबह और शाम सूर्य देव की आराधना करते थे| खास कर हर षष्ठी और सप्तमी को सूर्य पुत्र अंग राज कर्ण भगवान सूर्य की विशेष पूजा करते थे| अपने राजा को इस तरह पूजा करते देख अंग देश की जनता भी प्रतिदिन सूर्योदय और सूर्यास्त पर भगवान सूर्य की आराधना करने लगे| और देखते ही देखते यह पूजा पुरे क्षेत्र में प्रशिद्ध हो गयी|

पंडित के अनुसार साधु की हत्या का प्राश्चित करने हेतु जब महाराज पांडु अपनी पत्नी कुंती और माद्री के साथ वनवास गुजार रहे थे| उन दिनों पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा ले कर रानी कुंती ने सरस्वती नदी में भगवान सूर्य को अर्ग दिया था| इस पूजा के कुछ महीनो बाद ही कुंती पुत्रवती हुई थी| इस पर्व को द्रौपदी द्वारा भी किया गया है| कहते है, इस पर्व को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है|



Chhath Puja


ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं | अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ||



Chhath Puja छठ पूजा व्रत विधि



भगवान सूर्य देव को सम्पूर्ण रूप से समर्पित यह त्योहार पूरी स्वच्छता के साथ मनाया जाता है| इस व्रत को पुरुष और स्त्री दोनों ही सामान रूप से धारण करते है| यह पावन पर्व पुरे चार दिनों तक चलता है| व्रत के पहले दिन यानी कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाए खाए होता है, जिसमे सारे वर्ती आत्म सुद्धि के हेतु केवल शुद्ध आहार का सेवन करते है| कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन खरना रखा जाता है, जिसमे शरीर की शुधि करण के बाद पूजा करके सायं काल में ही गुड़ की खीर और पुड़ी बनाकर छठी माता को भोग लगाया जाता है| इस खीर को प्रसाद के तौर पर सबसे पहले वर्तियों को खिलाया जाता है और फिर ब्राम्हणों और परिवार के लोगो में बांटा जाता है|





कार्तिक शुक्ल षष्टि के दिन घर में पवित्रता के साथ कई तरह के पकवान बनाये जाते है और सूर्यास्त होते ही सारे पकवानों को बड़े-बड़े बांस के डालों में भड़कर निकट घाट पर ले जाया जाता है| नदियों में ईख का घर बनाकर उनपर दीप भी जलाये जाते है| व्रत करने वाले सारे स्त्री और पुरुष जल में स्नान कर इन डालों को अपने हाथों में उठाकर षष्टी माता और भगवान सूर्य को अर्ग देते है| सूर्यास्त के पश्चात अपने-अपने घर वापस आकर सह-परिवार रात भर सूर्य देवता का जागरण किया जाता है| इस जागरण में छठ के गीतों का अपना एक अलग ही महत्व है| कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सूर्योदय से पहले ब्रम्ह मुहूर्त में सायं काल की भाती डालों में पकवान, नारियल और फलदान रख नदी के तट पर सारे वर्ती जमा होते है| इस दिन व्रत करने वाले स्त्रियों और पुरुषों को उगते हुए सूर्य को अर्ग देना होता है| इसके बाद छठ व्रत की कथा सुनी जाती है और कथा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है| सरे वर्ती इसी दिन प्रसाद ग्रहण कर पारण करते है|
Chhath Puja


इस पर्व से जुड़ी एक पौराणिक परंपरा के अनुसार जब छठी माता से मांगी हुई मुराद पूरी हो जाती है तब सारे वर्ती सूर्य भगवान की दंडवत आराधाना करते है| सूर्य को दंडवत प्रणाम करने की विधि काफी कठिन होती है|

दंडवत प्रणाम की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है: पहले सीधे खड़े होकर सूर्य देव को सूर्य नमस्कार किया जाता है और उसके पश्चात् पेट के बल जमीन पर लेटकर दाहिने हाथ से ज़मीन पर एक रेखा खिंची जाती है| इस प्रक्रिया को घाट पर पहुँचने तक बार-बार दोहराया जाता है| इस प्रक्रिया से पहले सारे वर्ती अपने घरों के कुल देवता की आराधना करते है|



छठ पूजा करने वाले वर्तियों को कई तरह के नियमों का पालन करना पड़ता है| उनमें से प्रमुख नियम निम्नलिखित है:
इस पर्व में पुरे चार दिन शुद्ध कपड़े पहने जाते है| कपड़ो में सिलाई ना होने का पूर्ण रूप से ध्यान रखा जाता है| महिलाएं साड़ी और पुरुस धोती धारण करती है|
पुरे चार दिन व्रत करने वाले वर्तियों का जमीन पर सोना अनिवार्य होता है| कम्बल और चटाई का प्रयोग करना उनके इच्छा पे निर्भर करता है|
इन दिनों प्याज, लहसुन और मांस-मछली का सेवन करना वर्जित है|
पूजा के बाद अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राम्हणों को भोजन कराया जाता है|

इस पावन पर्व में वर्तियों के पास बांस के सूप का होना अनिवार्य है|
प्रसाद के तौर पर गेहूँ और गुड़ के आटों से बना ठेकुआ और फलों में केले प्रमुख है|
अर्ग देते वक्त सारी वर्तियों के पास गन्ना होना आवश्यक है| गन्ने से भगवान सूर्य को अर्ग दिया जाता है|



Chhath Puja छठ पूजा रेसिपी छठ पूजा, परम पवित्रता अभ्यास के लिए जानी जाती है, जिसे लोग उपवास के दौरान लेते हैं, कुछ बेहतरीन व्यंजनों के लिए भी जाना जाता है। यहाँ छठ पूजा व्यंजनों की एक सूची है-



चावल की खीर

छठ खीर रेसिपी सामग्री:

बासमती चावल (छोटी किस्म) 200 ग्राम दूध 2 और 1/2 लीटर मात्रा में इलाची 1/2 छोटा चम्मच चीनी स्वादानुसार एक चुटकी केसर पाउडर (वैकल्पिक) 2 चम्मच किशमिश (सूखे अंगूर) और काजू (एनाकार्डियम ऑसीडेंटेल)


तरीका:


चावलों को पानी में भिगोकर धो लें। अब धुले हुए चावलों को दूध में धीमी आंच पर उबाल लें। लगातार चलाते रहें नहीं तो चावल बर्तन के बेस से चिपचिपे हो जाएंगे। जब चावल पक जाएं तो चीनी डालकर अच्छी तरह मिला लें। जरूरत हो तो केसर डालें वरना छोड़ दें। चावल और दूध के लगातार चिपचिपे मिश्रण के बाद, इसे आंच से हटा लें और ठंडा होने दें खीर को काजू और किशमिश से सजाकर सर्व करें।

लाल साग

Chhath Puja छठ लाल साग रेसिपी सामग्री:


लाल साग का एक गुच्छा लाल मिर्च - 1 या 2 साबुत हल्दी -1/3 चम्मच अदरक (1/2') - बारीक कटा हुआ नमक स्वादअनुसार। खाना पकाने का तेल - 1 छोटा चम्मच


तरीका:

पत्ते साफ करें, सख्त डंठल हटा दें और साग को मोटा-मोटा काट लें। एक पैन में तेल गर्म करें; अदरक और लाल मिर्च डालें। सामग्री को मध्यम आंच पर कुछ मिनट के लिए भूनें। अब कटा हुआ लाल साग डालें और एक-दो मिनट के लिए भूनें। आंच धीमी कर दें, हल्दी डालें और अच्छी तरह मिलाएँ। अब ढक्कन लगाकर कम से कम 10 मिनट तक पकाएं। बीच-बीच में चैक करते रहें और अगर चिपचिपा और सूखा लगे तो थोड़ा पानी डालें। अब स्वादानुसार नमक डालकर एक मिनिट तक भूनें। कुछ मिनिट बाद साग को बाहर निकालिये और परांठे और चपाती के साथ गरमा गरम परोसिये.


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